इतिहास साक्षी है,जो व्यक्ति भाग्य के भरोसे बैठा रहता है, वह व्यक्ति आलसी, निकम्मा, परावलंबी, और अपने परिवार, समाज, देश के लिए बोझ बन जाता है aur usse mehnat ka phal nahi milta
लक्ष्मी उसी का वरण करती है जो व्यक्ति कर्मवीर होता है, अर्थात अनेक प्रकार की बाधाओं, मुसीबतों, संघर्षों और असफलताओं को साहस एवं दृढ़ता से मुकाबला करता हुआ अपने गंतव्य को प्राप्त करने में सफल होता है।
जो व्यक्ति कर्म भीरू,अर्थात परिश्रम से दूर भागता है और कायर की भांति वक्त के थेपेड़ोे को खाता हुआ, निराशा के गर्त में गिर जाता है। ऐसा व्यक्ति भाग्यवादी होता है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने भाग्य के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है। लेकिन भाग्यवादी व्यक्ति आलसी और निकम्मा हो जाता है, क्योंकि वह प्रत्येक कार्य के लिए अपने भाग्य पर निर्भर होकर उसी को परिणाम के लिए दोषी ठहराता है।
इसके विपरीत परिश्रमी व्यक्ति अपने परिश्रम पर विश्वास करता है।
Mehnat Ka Phal Haath Ki Lakeere Aur Rekha Dekh Ke Nahi Milta
जबकि पुरुषार्थी व्यक्ति मेहनत करके विश्व विजेता बन जाता है। व्यक्ति की उन्नति निश्चय ही उनके भाग्य पर नहीं उनके पुरुषार्थ पर निर्भर करती है। भाग्यवादी व्यक्ति मानते हैं कि जो उनके भाग्य में होता है वही उनको प्राप्त होता है।
” कर्म गति टारे नहीं टरे।” भाग्यवादी मानते हैं कि जो कुछ उन्हें प्राप्त होता है उसे उसके भाग्य के अनुसार भी मिलता है। कुछ लोगों का यह दृढ़ विश्वास है कि भाग्य के लिखे को कोई नहीं मिटा सकता।लेकिन पुरुषार्थ के पक्षधर मानते हैं कि व्यक्ति अपने परिश्रम और दृढ़ संकल्प से भाग्य को बदल सकता है। आज मनुष्य ने अनेकों चमत्कारी अविष्कार कर लिए हैं। यह मानव के पुरुषार्थ का ही प्रतिफल हैं।
आज मनुष्य ने प्रकृति को अपने वश में कर लिया है, सागर की गहराइयों का दोहन कर लिया है, पर्वतों को चीरकर सड़के बना ली है,दूसरे ग्रहों तक तक पहुंच गया है। यदि वह भाग्य के भरोसे बैठा रहता तो वह अभी तक पाषाण युग में ही विचरण कर रहा होता। कर्मण्ये वाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन अर्थात कर्म करें। मनुष्य के जीवन में चार उद्देश्य हैं धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष । यह चारों उद्देश्य पुरुषार्थ से ही प्राप्त होते हैं।
Mehnat Ka Arth
भाग्य से नहीं अर्थात पुरुषार्थ किए बिना भाग्य का निर्माण नहीं हो सकता। इसलिए तुलसीदास ने भी कहा है. कर्म प्रधान विश्व रचि राख।जो जस करहिं सो तस फल चाखा हमारी संस्कृति में यह मान्यता है जो पूर्व जन्म में किया हुआ कर्म है।वही हमारा भाग्य कहलाता है।
इसलिए कर्म का मार्ग ही सर्वोत्तम है और कर्म का मार्ग पुरुषार्थ का मार्ग है पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी किसी को कुछ नहीं दे सकता! इसलिए हे मनुष्य पुरुषार्थ करें सभी बाधाओं, मुसीबतों, संघर्षों और असफलताओं के बाद भी मुकाबला करते हुए आगे बढ़ो। जैसे मैथिलीशरण गुप्त ने कहा है. कि पुरुष हो, पुरुषार्थ करो, उठो, सफलता वर- तुल्य वरो, उठो।