यह ऐतिहासिक तथ्य है कि दिल्ली कई बार उजड़ी और बसी भी हर बार है
उजड़कर बसना शहर के पूरब दिशा में बहने वाली यमुना ने संभव किया.वह यमुना ही थी, जिसने कभी दिल्ली की बसावट तय की थी. अपने आकर्षण का चुंबक पैदा कर, मजबूत जीवनदायिनी भूदृश्य देकर रिश्ता इस कदर बना कि गिरकर उठ जाना हर काल में चलता रहा.
लेकिन आज, यमुना और दिल्ली के रिश्ते में टूटन आई है. यह पहली बार हुआ है कि दिल्ली के लोग अपनी यमुना को भूलने लगे हैं. तभी राजधानी की जीवन रेखा धुंधली हो चली है. यमुना मृतप्राय हो चली है. इकोलॉजिकली यह मृत है. दायरा सिकुड़ने के क्रम में आशंका इसके मृत हो जाने की भी जताई जा रही है. और यकीनन इसके न होने का संकट दिल्ली पर भी है.
यमुना बचेगी, तभी दिल्ली बचेगी और हम भी. तो बात यमुना के बहाने खुद को बचाने की है. यमुना संसद बुलाने का मूल मकसद यही है. इसमें हम सब यमुना के साथ खड़े होंगे. 4 जून, सुबह 6:30 बजे, मानव श्रृंखला बनाकर, वजीराबाद से कालिंदी कुंज तक. यह वही हिस्सा है, जो यमुना को सबसे ज्यादा पीड़ा देता है, यह यहीं प्रदूषित सबसे ज्यादा ज्यादा होती हैं. दम यहीं घुटता है इनका.
करीब चार महीने में पूरी दिल्ली में इसकी मुहिम चल रही है. आवासीय कॉलोनियों, बाजारों समेत दिल्ली की गली-गली में यमुना जी की बात हुई है. सबका उत्साहवर्धक समर्थन मिल रहा है. यह इतिहास में दर्ज होगा कि एक लाख यमुना प्रेमी अपनी मां को बचाने के लिए मां के पास पहुंचेंगे. 20वीं सदी के दूसरे दशक में महामना पंडित मदन मोहन मालवीय के गंगा जी को बांध मुक्त कराने के प्रयास के बाद से यह पहली बार होगा, जब नदी को बचाने के लिए इतनी संख्या में लोग अपने घरों से निकलेंगे. हम दिल्ली के लोग नजदीक से पूरी दिल्ली यमुना की पीड़ा को महसूस करेंगे. जन-जन तक जब बात पहुंचेगी तो सरकारों को भी इसे महसूसना पड़ेगा.
यकीन जानिए, यमुना जी की पीड़ा जिस दिल्ली के लोगों की चेतना से जुड़ पाई, सरकार व समाज के सहभाग से तब यमुना जी अविरल भी होंगी, निर्मल भी.
धन्यवाद
टीम यमुना संसद
कार्यक्रम की रूपरेखा
आयोजन स्थल: वजीराबाद से ओखला तक के 22 किमी लंबी मानव श्रृंखला.
लोगों की संख्या: करीब एक लाख.
दिन: पर्यावरण दिवस से एक दिन पहले, 4 जून.
समय: सुबह 6:30 बजे -9:00 बजे
संपर्क:
राजकुमार भाटिया: +919811058810
रविशंकर तिवारी: +91 99990 90612
रवि शर्मा: +91 98992 82827