Kishoravastha Kya Hai, Age, Samasya Aur Meaning: किशोरावस्था सुनहरी अवस्था

Kishoravastha Kya Hai, Age, Samasya Aur Meaning: किशोरावस्था सुनहरी अवस्था

किशोरावस्था अर्थात” परिपक्वता की ओर बढ़ना ” कोई भी बालक किशोरावस्था को पार किए बिना वयस्क नहीं हो सकता। Jaaniya kishoravastha kya hai aur kise kehte hai

यह वह समय है जब वह न बालक होता है और न ही वयस्क| किशोरावस्था वह अवस्था है जिसमें सभी प्रकार के बदलाव बालकों के अंदर होते हैं जैसे शारीरिक,मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक, तथा संज्ञानात्मक। किशोरावस्था को सुनहरी अवस्था भी कहते हैं, क्योंकि इस में यौवन अपने चरम सीमा पर होता है।

Kishoravastha Kya Hai, Age Aur Samasya: कठिनाइयों का सामना

किशोरावस्था परिवर्तनों की अवस्था है, इस समय तीव्र गति से बालकों के अंदर परिवर्तन आते हैं, और यह विशेष समय होता है जिसमें प्रत्येक बालकों को कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

इस समय सभी बालक अपने अंदर जो शारीरिक,मानसिक, और सामाजिक बदलाव आ रहे होते हैं। उन से परेशान होते हैं,और वो समाज में, घर में, दोस्तों में ठीक प्रकार से अपने को समायोजित नहीं रख पाते। इसीलिए सभी माता-पिता को अपने बच्चों का इस समय अर्थात किशोरावस्था में विशेष ध्यान रखना चाहिए|

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किशोरावस्था का समय 10 वर्ष से 21 वर्ष तक का होता है। प्रत्येक बालक के अंदर किशोरावस्था का समय अलग-अलग होता है । यह पूर्व भी हो सकता है,आरंभिक भी हो सकता है और बाद में भी हो सकता है।

संघर्ष,तनाव व विरोध की अवस्था किशोरावस्था जीवन का सबसे कठिन काल है।  किशोरावस्था में किशोर अपने शारीरिक रूप के लिए बहुत ही ज्यादा सोचते हैं। किशोरियाँ अपने भोजन को हमेशा अपनी सुंदरता के संदर्भ में सोचती हैं।

Kishoravastha Kise Kahate Hai

इस समय किशोर अपने साथियों के साथ सामंजस्य नहीं बिठा पाते।अपने अंदर होने वाले परिवर्तनों को ठीक से समझ नहीं पाते। अपने इस बदले हुए रूप को भी स्वीकार नहीं कर पाते और अजीब सा महसूस करते हैं।

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इस समय माता-पिता, अध्यापक व समाज उनसे कुछ ज्यादा ही उम्मीदें रखते हैं,जिनको वह पूरा करने में असमर्थ होते हैं। इस अवस्था में हम उम्र मित्रों का प्रभाव बहुत ज्यादा पड़ता है। इस समय उनका व्यवहार, रहन-सहन, बात-चीत, सोच, भविष्य की योजनाएं सभी उनके समूह से प्रभावित होती हैं।

इस समय कई बार मित्र समूह के प्रभाव में आकर किशोर गलत संगत में भी पड़ जाते हैं। इन लक्षणों को देखते हुए माता -पिता को किशोर बच्चों के अंदर आत्मविश्वास पैदा करना चाहिए। बच्चों को समय देना चाहिए उनसे सकारात्मक बात करें, उनको बढ़ावा दें, उनको आत्मनिर्भर, आत्मविश्वासी बनने में सहायता करें।

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