क्रिकेट बॉल in Hindi: क्रिकेट एक ऐसा खेल है जिसमें हमेशा गेंद और बल्ले के बीच संघर्ष देखने को मिलता है। इस खेल में गेंद का अपना बड़ा महत्व होता है।
कुछ गेंद ऐसी होती हैं जो स्पिनर को मदद करतीं हैं जबकि कुछ गेंदे सीमर्स को मदद करती हैं। इस खेल में क्रिकेट बॉल का इतिहास भी पुराना रहा है।
जैसे- जैसे समय बीतता गया, खेल का तरीका भी बदलता गया और उसी तरीके से गेंद में भी समय-समय पर बदलाव होते गए। आपको शायद ही ये बात पता होगी कि पुरुषों की क्रिकेट बॉल का वजन 155.9 और 163 ग्राम के बीच होता है; और इसकी परिधि 22.4 और 22.9 सेंटीमीटर के बीच होती है।
क्रिकेट बॉल in Hindi: आज हम आपको क्रिकेट बॉल में इस्तेमाल की जाने वाली गेंदों के बारे में बताएंगे।(Best Cricket Balls)
वर्तमान समय में क्रिकेट में तीन प्रकार की गेंदों का प्रयोग किया जाता है, इन गेंद का नाम है कूकाबुरा, ड्यूक और एसजी। चलिए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
क्रिकेट बॉल in Hindi
कूकाबूरा बॉल्स
कूकाबुरा कम्पनी की स्थापना 1890 में की गई थी। तकरीबन 128 सालों से ज्यादा का समय हो चूका है और अब तक कूकाबुरा क्रिकेट बॉल्स बना रही है। इसे दुनिया का नंबर वन गेंद भी बताया जाता है और इसकी क्वालिटी भी सबसे अच्छी बताई जाती है। इस गेंद का इस्तेमाल सबसे पहले 1946-1947 में एशेज टेस्ट सीरीज में किया गया था। इस गेंद का वजन 156 ग्राम होता है।
शुरुआत में इस गेंद से स्पिनर्स को ज्यादा मदद नहीं मिलती है लेकिन जैसे-जैसे गेंद पुरानी होती जाती है यह स्पिनर्स को हलकी मदद करती है। इस गेंद की एक खास बात ये भी है कि गेंद जितनी पुरानी होती जाती है, बल्लेबाजों को और परेशानी का समाना करना पड़ता है।
अब इस गेंद का इस्तेमाल टेस्ट, वनडे और टी20 फॉर्मेट में भी किया जाता है। इस गेंद का इस्तेमाल ऑस्ट्रेलिया,न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, श्रीलंका और दक्षिण अफ्रीका जैसे देशों में किया जाता है।
ड्यूक बॉल्स (Duke Balls)
ड्यूक बॉल भी क्रिकेट की सबसे पुरानी गेंद है। इस गेंद का इस्तेमाल वेस्टइंडीज और इंग्लैंड जैसे देश कर रहे हैं। इसके कम्पनी की शुरुआत 1760 में हुई थी। इस गेंद को मशीन से नहीं बल्कि हाथ से बनाया जाता है। दूसरी गेंदों के मुकाबले ये गेंद अधिक स्विंग करती है। सीम पर इस गेंद को बहुत अधिक मदद मिलती है और ये गेंद सीम के लिए ही मशहूर है।
SG बॉल्स
बात करें SG के बॉल की तो ये बॉल भारत में ही इस्तेमाल होती है। ऐसा कहा जाता है कि ये बॉल भारत के परिस्थितियों के लिए काफी बेहतरीन है। यहां SG का फुल फॉर्म है सन्सपेरिल्स ग्रीनलैंड्स। इसकी स्थापना साल 1931 में केदारनाथ और द्वारकानाथ आनंद ने सियालकोट में की थी जो अब पाकिस्तान में है लेकिन बंटवारे के बाद ये कंपनी मेरठ आ गई।
बीसीसीआई ने साल 1991 में टेस्ट क्रिकेट के लिए SG गेंदों को मंजूरी दी थी और तब से लेकर अब तक भारत में टेस्ट क्रिकेट इसी गेंद से खेली जाती है। इस गेंद की खासियत ये है कि इसमें एक बड़ी सीम होता है जो कि मोटे धागे की सिलाई के कारण काफी पास-पास होती है और इसी वजह से गेंद पूरे दिन के खेल के बाद भी अच्छी कंडीशन में रहती है। इन गेंदों को आज भी हाथों से ही बनाया जाता है।
तो ये थी दुनियाभर में इस्तेमाल की जाने वाली विभिन्न गेंदों की जानकारी, उम्मीद है, इस जानकारी से क्रिकेट प्रेमियों का ज्ञान और बढ़ेगा।
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